वा॒मम॒द्य स॑वितर्वा॒ममु॒ श्वो दि॒वेदि॑वे वा॒मम॒स्मभ्यं॑ सावीः। वा॒मस्य॒ हि क्षय॑स्य देव॒ भूरे॑र॒या धि॒या वा॑म॒भाजः॑ स्याम ॥६॥
vāmam adya savitar vāmam u śvo dive-dive vāmam asmabhyaṁ sāvīḥ | vāmasya hi kṣayasya deva bhūrer ayā dhiyā vāmabhājaḥ syāma ||
वा॒मम्। अ॒द्य। स॒वि॒तः॒। वा॒मम्। ऊँ॒ इति॑। श्वः। दि॒वेऽदि॑वे। वा॒मम्। अ॒स्मभ्य॑म्। सा॒वीः॒। वा॒मस्य॑। हि। क्षय॑स्य। दे॒व॒। भूरेः॑। अ॒या। धि॒या। वा॒म॒ऽभाजः॑। स्या॒म॒ ॥६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह प्रजाओं के लिये क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स प्रजाभ्यः किं कुर्यादित्याह ॥
हे सवितर्देव ! यथा हि त्वमद्य वामसु श्वो वामं दिवेदिवे वाममस्मभ्यं सावीस्तस्मात् तयाऽया धिया भूरेर्वामस्य क्षयस्य वामभाजो वयं स्याम ॥६॥